अलग आरक्षण हमारा संवैधानिक अधिकार है:- दर्शन ‘रत्न’ रावण ll
सिरसा :- ( अक्षित कम्बोज ) :- दर्शन ‘रत्न’ रावण ने कहा कि हर आरक्षण और इन्साफ की लड़ाई को हमने आगे बढ़ कर लड़ा। अब हमारा अगला कदम होगा कि हम सारी महादलित जातियों का एक सामूहिक मंच कायम करें। जिसका नेतृत्व भी साँझा हो। फिर मिल बैठ कर सोच समझ के साथ आगामी कदम उठाएँ। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत की दूरदृष्टि और खुले मन से सोचते हुए कर दिया है। साफ कहा कि हिस्सेदारी दी जाए। कुतर्क दिया जा रहा है कि इससे फुट पड़ेगी। फुट को कितना गहरा करना है यह अगड़े दलितों पर निर्भर है। हम महादलित तो केवल अपना हक़ मांग रहें हैं। यही तर्क उस वक्त भी दिया जा रहा था जब बाबा-ए-कौम डॉ आम्बेडकर जी आरक्षण की मांग कर रहे थे, तब भी यही कहा जा रहा था कि इससे देश में फूट पड़ जाएगी, देश कमज़ोर होगा। ऐसे तर्क आज दलितों में फुट डालने वाले अगड़े दलित दे रहे हैं। इन तर्कों के उलट ऐसी बहुत सी मिसाल है कि यही सारा आरक्षण हड़पने वाले अगड़े दलितों में फूट डालते हैं। पहली मिसाल मायावती जी की ही ले लीजिए। मायावती जी उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 टिकटों को बाँटते हुए पूरा-पूरा ध्यान रखती हैं कि एक भी टिकट वाल्मीकि कौम को न दिया जाए। मायावती जी ने उत्तर प्रदेश के कई जिलों के नाम दलित महापुरुषों के नाम पर रखे मगर वाल्मीकि नाम कहीं नहीं रखा। एक लाख आठ हज़ार से ज़्यादा सफाई कर्मचारी पदों पर भर्ती की। लेकिन इनमें 8000 वाल्मीकि भी नहीं चुने गए। तो जहां वे पूरे हो सकते थे, वह जगह भी उनसे छीन ली गई। मायावती गोहाना नहीं आई न मिर्चपुर पहुँची, हाथरस उत्तर-प्रदेश में होते हुए नहीं। इसका क्या कारण हो सकता है? अगर दलित एकता का मसला है तो गोहाना और मिर्चपुर के दलित उनकी सहानुभूति के पात्र क्यों नहीं हैं? जबकि उन्हीं दिनों हुई अन्य घटनाओं में वो पहुँची क्योंकि वहां दलित नहीं सजातीय मसला था।
मायावती की तरह ही कांग्रेस में भी हैं दलित नेत्रियाँ हैं । एक योजना अटल सरकार के समय बनाई गई। नाम था वाल्मीकि अम्बेडकर आवास योजना। जैसे ही कांग्रेस {UPA} की सरकार बनी। दोनों सक्रिय हुईं और उस योजना में से वाल्मीकि नाम हटवा दिया। कभी इन्हीं अगड़े दलितों ने नारा लगाया, “जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी। फिर कहा कि 6000 जातियों को जोड़ा जाएगा 85% की बात करने लगे। अब जब सच में अमल में लाने की बात उठी तो अपने बड़े भाईयों महादलितों के विरुद्ध उठ खड़े हुए। हम आज भी केवल हिस्सेदारी ही चाहते हैं जो कि हमारा हक़ है। जहाँ तक दलित एकता की बात है हमने तो हमेशा आगे बढ़कर लड़ा है। हम आदि, आदिवासी और आदि-धर्म की बात करते है। जय वाल्मीकि और जय जोहार का नारा लगा कर एकता को बुलंद कर रहे हैं।। @newstodayhry #newstodayhry